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Surah al-Ahzab Ayat 37 with English Translation

Read Surah al-Ahzab with English & Urdu translations of the Holy Quran online by Shaykh ul Islam Dr. Muhammad Tahir ul Qadri. It is the 33rd Surah in the Quran Pak with 73 verses. The surah's position in the Quran Majeed in Juz 21 - 22 and it is called Madani Surah of Quran Karim. You can listen to audio with Urdu translation of Irfan ul Quran in the voice of Tasleem Ahmed Sabri.

اللہ کے نام سے شروع جو نہایت مہربان ہمیشہ رحم فرمانے والا ہے
In the Name of Allah, the Most Compassionate, the Ever-Merciful
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وَ اِذۡ تَقُوۡلُ لِلَّذِیۡۤ اَنۡعَمَ اللّٰہُ عَلَیۡہِ وَ اَنۡعَمۡتَ عَلَیۡہِ اَمۡسِکۡ عَلَیۡکَ زَوۡجَکَ وَ اتَّقِ اللّٰہَ وَ تُخۡفِیۡ فِیۡ نَفۡسِکَ مَا اللّٰہُ مُبۡدِیۡہِ وَ تَخۡشَی النَّاسَ ۚ وَ اللّٰہُ اَحَقُّ اَنۡ تَخۡشٰہُ ؕ فَلَمَّا قَضٰی زَیۡدٌ مِّنۡہَا وَطَرًا زَوَّجۡنٰکَہَا لِکَیۡ لَا یَکُوۡنَ عَلَی الۡمُؤۡمِنِیۡنَ حَرَجٌ فِیۡۤ اَزۡوَاجِ اَدۡعِیَآئِہِمۡ اِذَا قَضَوۡا مِنۡہُنَّ وَطَرًا ؕ وَ کَانَ اَمۡرُ اللّٰہِ مَفۡعُوۡلًا ﴿۳۷﴾

37. اور (اے حبیب!) یاد کیجئے جب آپ نے اس شخص سے فرمایا جس پر اللہ نے انعام فرمایا تھا اور اس پر آپ نے (بھی) اِنعام فرمایا تھا کہ تُو اپنی بیوی (زینب) کو اپنی زوجیت میں روکے رکھ اور اللہ سے ڈر، اور آپ اپنے دل میں وہ بات٭ پوشیدہ رکھ رہے تھے جِسے اللہ ظاہر فرمانے والا تھا اور آپ (دل میں حیاءً) لوگوں (کی طعنہ زنی) کا خوف رکھتے تھے۔ (اے حبیب! لوگوں کو خاطر میں لانے کی کوئی ضرورت نہ تھی) اور فقط اللہ ہی زیادہ حق دار ہے کہ آپ اس کا خوف رکھیں (اور وہ آپ سے بڑھ کر کس میں ہے؟)، پھر جب (آپ کے متبنٰی) زید نے اسے طلاق دینے کی غرض پوری کرلی، تو ہم نے اس سے آپ کا نکاح کر دیا تاکہ مومنوں پر ان کے منہ بولے بیٹوں کی بیویوں (کے ساتھ نکاح) کے بارے میں کوئی حَرج نہ رہے جبکہ (طلاق دے کر) وہ ان سے بے غَرض ہو گئے ہوں، اور اللہ کا حکم تو پورا کیا جانے والا ہی تھاo

٭: (کہ زینب کی تمہارے ساتھ مصالحت نہ ہو سکے گی اور منشاء ایزدی کے تحت وہ طلاق کے بعد اَزواجِ مطہرات میں داخل ہوں گی۔)

37. And, (O Beloved, recall) when you said to him whom Allah had favoured and whom you (too) had done a favour: ‘Keep your wife (Zaynab) with you in the bond of marriage and fear Allah.’ And you were keeping that secret* in your heart which Allah was about to reveal. And you had (out of decency) the fear of the (scoffs of) people (in your heart. O Beloved! You need not have cared for people). And Allah alone has a greater right that you should fear Him (and who is more Godfearing than you!) So when (your adopted son) Zayd fulfilled his desire to divorce her, We married her to you so that there is no blame on the believers for (marrying) the wives of their adopted sons, whilst they have no desire for them (after divorce). And carrying out Allah’s command was a must.

* That Zaynab would not be able to reconcile with you, and according to Allah’s will she would be admitted to ‘the pure wives’ after her divorce.

37. Waith taqoolu lillathee anAAama Allahu AAalayhi waanAAamta AAalayhi amsik AAalayka zawjaka waittaqi Allaha watukhfee fee nafsika ma Allahu mubdeehi watakhsha alnnasa waAllahu ahaqqu an takhshahu falamma qada zaydun minha wataran zawwajnakaha likay la yakoona AAala almumineena harajun fee azwaji adAAiyaihim itha qadaw minhunna wataran wakana amru Allahi mafAAoolan

37. Og (kjære elskede ﷺ!), kom i hu den gang du sa til ham som Allah hadde vist gunst til, og som du også hadde vist gunst til: «Behold din hustru (Zeynab) i ditt ekteskap, og frykt Allah!». Men du holdt skjult i hjertet ditt det Allah var i ferd med å avsløre, mens du (av anstendighet i hjertet) hadde frykt for (fornærmelsene til) menneskene. Og (kjære elskede ﷺ, du trengte ikke å bekymre deg for det folk ville si!), Allah har mer rett til at du frykter Ham (og hvem eier da denne bevisste frykten mer enn du?). Så da (din adoptivsønn) Zeyd skilte seg fra henne, ektet Vi henne med deg, sånn at det ikke skulle være noen skyld for de troende i å ekte sine adoptivsønners hustruer når de ikke ønsker dem mer (har gitt dem skilsmisse). Og Allahs befaling måtte bli gjort.

37. और (ऐ हबीब!) याद कीजिए जब आपने उस शख़्स से फरमाया जिस पर अल्लाह ने इन्आम फरमाया था और उस पर आपने (भी) इन्आम फरमाया था कि तू अपनी बीवी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौजिय्यत में रोके रख और अल्लाह से डर और आप अपने दिल में वोह बात * पोशीदा रख रहे थे जिसे अल्लाह ज़ाहिर फरमाने वाला था और आप (दिल में हयाअन) लोगों (की ताना ज़नी) का ख़ौफ रखते थे। (ऐ हबीब! लोगों को ख़ातिर में लाने की कोई ज़रूरत न थी) और फक़त अल्लाह ही ज़ियादा हक़दार है कि आप उसका ख़ौफ रखें (और वोह आपसे बढ़कर किस में है?) फिर जब (आपके मु-त-बन्ना) जै़द ने उसे तलाक़ देने की ग़रज़ पूरी कर ली, तो हमने उससे आपका निकाह कर दिया ताकि मोमिनों पर उनके मुंह बोले बेटों की बीवियों (के साथ निकाह) के बारे में कोई हरज न रहे जब कि (तलाक़ देकर) वोह उनसे बे ग़रज़ हो गए हों, और अल्लाह का हुक्म तो पूरा किया जाने वाला ही था।

* (कि ज़ैनब की तुम्हारे साथ मुसालेहत न हो सकेगी और मन्शए ईज़दी के तहत वोह तलाक़ के बाद अज़्वाजे मुतह्हरात में दाख़िल होंगी)

৩৭. আর (হে হাবীব!) স্মরণ করুন, যখন আপনি সে ব্যক্তিকে বলেছিলেন যাকে আল্লাহ্ অনুগ্রহ করেছিলেন এবং আপনিও যাকে অনুগ্রহ করেছিলেন, ‘তোমার স্ত্রী (যয়নব)-কে স্বীয় স্ত্রী হিসেবেই ধরে রাখো এবং আল্লাহ্কে ভয় করো’। আর আপনি স্বীয় অন্তরে যে কথা* লুকিয়ে রেখেছিলেন আল্লাহ্ তা প্রকাশ করে দিচ্ছেন। আপনি (অন্তরে লজ্জাবশত) মানুষের (ঠাট্টা-বিদ্রুপের) ভয় করছিলেন। (হে হাবীব! মানুষকে ভ্রুক্ষেপ করার কোনো প্রয়োজন ছিল না) আর কেবল আল্লাহ্‌রই অধিকার রয়েছে যে, আপনি তাঁকে ভয় করুন। (আপনার চেয়ে অধিকতর আর কার মধ্যে তা আছে?) অতঃপর যখন (আপনার পোষ্যপুত্র) যায়েদ তাঁকে তালাকের আকাঙ্ক্ষা পূর্ণ করলো, তখন আমরা তাঁকে আপনার সাথে পরিণয়সূত্রে আবদ্ধ করলাম, যাতে মুমিনদের উপর তাদের পোষ্যপুত্রদের স্ত্রীদের (সাথে বিবাহের) ব্যাপারে কোনো অপবাদ না আসে, যখন (তালাকের পর) তাদের প্রয়োজন ফুরিয়ে যায়। আর আল্লাহ্‌র নির্দেশ তো কার্যকর হয়েই থাকে।

* (যে, যয়নবের সাথে তোমার মীমাংসা হবে না, আল্লাহ তা’আলার ইচ্ছায় সে নবী (সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া আলিহী ওয়াসাল্লাম)-এঁর পবিত্র স্ত্রীগণের মাঝে গণ্য হবেন।)

(al-Ahzab, 33 : 37)