قَالَ مَا خَطۡبُکُنَّ اِذۡ رَاوَدۡتُّنَّ یُوۡسُفَ عَنۡ نَّفۡسِہٖ ؕ قُلۡنَ حَاشَ لِلّٰہِ مَا عَلِمۡنَا عَلَیۡہِ مِنۡ سُوۡٓءٍ ؕ قَالَتِ امۡرَاَتُ الۡعَزِیۡزِ الۡـٰٔنَ حَصۡحَصَ الۡحَقُّ ۫ اَنَا رَاوَدۡتُّہٗ عَنۡ نَّفۡسِہٖ وَ اِنَّہٗ لَمِنَ الصّٰدِقِیۡنَ ﴿۵۱﴾
51. بادشاہ نے (زلیخا سمیت عورتوں کو بلا کر) پوچھا: تم پر کیا بیتا تھا جب تم (سب) نے یوسف (علیہ السلام) کو ان کی راست روی سے بہکانا چاہا تھا (بتاؤ وہ معاملہ کیا تھا)؟ وہ سب (بہ یک زبان) بولیں: اللہ کی پناہ! ہم نے (تو) یوسف (علیہ السلام) میں کوئی برائی نہیں پائی۔ عزیزِ مصر کی بیوی (زلیخا بھی) بول اٹھی: اب تو حق آشکار ہو چکا ہے (حقیقت یہ ہے کہ) میں نے ہی انہیں اپنی مطلب براری کے لئے پھسلانا چاہا تھا اور بیشک وہی سچے ہیںo
51. The king (called all the women including Zulaykha and) asked: ‘What happened to you when you (all) attempted to seduce Yusuf (Joseph) to turn him away from righteousness? (Explain what that affair was.) They all (unanimously) uttered: ‘Allah save us! We have not noticed any evil in Yusuf (Joseph).’ The wife of ‘Aziz (of Egypt, Zulaykha, too) spoke: ‘The truth has now become evident. (The fact is that) it was I who sought to seduce him for my purpose, and it is surely he who is truthful.’
51. Qala ma khatbukunna ith rawadtunna yoosufa AAan nafsihi qulna hasha lillahi ma AAalimna AAalayhi min sooin qalati imraatu alAAazeezi alana hashasa alhaqqu ana rawadtuhu AAan nafsihi wainnahu lamina alssadiqeena
51. Kongen (faraoen) spurte (Zoleykhā og de andre kvinnene): «Hva overgikk dere da dere forsøkte å friste Josef vekk fra hans kyskhet (forklar hva saken var)?» De svarte (i kor): «Måtte Allah bevare oss vel! Vi har ikke funnet noen umoral i Josef.» Egypts stormanns hustru (Zoleykhā) sa også: «Nå har sannheten blitt evident, (sannheten er at) jeg forsøkte å friste ham for hensikten min, og det er han som i sannhet er av de sannferdige.»
51. बादशाह ने (ज़ुलैख़ा समेत औरतों को बुला कर) पूछा तुम पर क्या बीता था जब तुम (सब) ने यूसुफ (अ़लैहिस्सलाम) को उनकी रास्त रवी से बहकाना चाहा था (बताओ वोह मुआमला क्या था?) वोह सब (ब-यक ज़बान) बोलीं अल्लाह की पनाह! हमने (तो) यूसुफ (अ़लैहिस्सलाम) में कोई बुराई नहीं पाई। अ़ज़ीज़े मिस्र की बीवी (ज़ुलैख़ा भी) बोल उठी: अब तो हक़्क़ आश्कार हो चुका है (हक़ीक़त ये है कि) मैंने ही उन्हें अपनी मतलब बरआरी के लिए फुसलाना चाहा था और बेशक वोही सच्चे हैं।
৫১. বাদশাহ্ (যুলাইখাসহ সকল নারীদেরকে ডেকে) বললেন, ‘তোমাদের কী ঘটেছিল, যখন তোমরা (সকলে) ইউসুফ (আলাইহিস সালাম)-কে তাঁর সঠিক পথ থেকে বিচ্যুৎ করতে চেয়েছিলে (বলো সে বিষয়টি কী ছিল)?’ তারা সকলে (এক বাক্যে) বললো, ‘আল্লাহ্র আশ্রয় চাই! আমরা (তো) ইউসুফ (আলাইহিস সালাম)-এঁর মাঝে মন্দ কিছু পাইনি।’ আযীযে মিশরের স্ত্রী (যুলাইখাও) বলে উঠলো, ‘এখন তো সত্য প্রকাশিত হয়ে গিয়েছে। (প্রকৃত সত্য এ যে,) আমিই তাঁকে আমার উদ্দেশ্য হাসিলের জন্যে ফুঁসলাতে চেয়েছিলাম। আর নিশ্চয় তিনিই সত্যবাদীদের অন্তর্ভুক্ত।’
قال ما خطبكن إذ راودتن يوسف عن نفسه قلن حاش لله ما علمنا عليه من سوء قالت امرأة العزيز الآن حصحص الحق أنا راودته عن نفسه وإنه لمن الصادقين