اِنۡ تُعَذِّبۡہُمۡ فَاِنَّہُمۡ عِبَادُکَ ۚ وَ اِنۡ تَغۡفِرۡ لَہُمۡ فَاِنَّکَ اَنۡتَ الۡعَزِیۡزُ الۡحَکِیۡمُ ﴿۱۱۸﴾
118. اگر توانہیں عذاب دے تو وہ تیرے (ہی) بندے ہیں اور اگر تو انہیں بخش دے تو بیشک تو ہی بڑا غالب حکمت والا ہےo
118. If You torment them, they are only Your servants, and if You forgive them, You are indeed Almighty, All-Wise.’
118. In tuAAaththibhum fainnahum AAibaduka wain taghfir lahum fainnaka anta alAAazeezu alhakeemu
118. Hvis Du piner dem, så er de Dine tjenere, og hvis Du tilgir dem, så er Du i sannhet den Allmektige, den mest Vise.»
118. अगर तू उन्हें अ़ज़ाब दे तो वोह तेरे (ही) बन्दे हैं और अगर तू उन्हें बख़्श दे तो बेशक तू ही बड़ा ग़ालिब हिक्मत वाला है।
১১৮. যদি তুমি তাদেরকে শাস্তি দাও, তবে তারা তোমার(ই) বান্দা আর যদি তুমি তাদেরকে ক্ষমা করে দাও, তবে নিশ্চয়ই তুমি মহাপরাক্রমশালী, প্রজ্ঞাবান।’
إن تعذبهم فإنهم عبادك وإن تغفر لهم فإنك أنت العزيز الحكيم