Surah adh-Dhariyat with Urdu Translation

Irfan-ul-Quran
  • 26, 27پارہ نمبر
  • 60آيات
  • 3رکوع
  • 67ترتيب نزولي
  • 51ترتيب تلاوت
  • مکیسورہ
or

اللہ کے نام سے شروع جو نہایت مہربان ہمیشہ رحم فرمانے والا ہے

In the Name of Allah, the Most Compassionate, the Ever-Merciful

اٰخِذِیۡنَ مَاۤ اٰتٰہُمۡ رَبُّہُمۡ ؕ اِنَّہُمۡ کَانُوۡا قَبۡلَ ذٰلِکَ مُحۡسِنِیۡنَ ﴿ؕ۱۶﴾

16. اُن نعمتوں کو (کیف و سرور) سے لیتے ہوں گے جو اُن کا رب انہیں (لطف و کرم سے) دیتا ہوگا، بیشک یہ وہ لوگ ہیں جو اس سے قبل (کی زندگی میں) صاحبانِ احسان تھےo

16. Receiving those blessings (in ecstatic delight) which their Lord will be giving them (with munificence and benevolence). Surely, it is they who were people of spiritual excellence (in their life) before this.

16. Akhitheena ma atahum rabbuhum innahum kanoo qabla thalika muhsineena

16. de vil ta imot (med lyst og ekstatisk glede) de velsignelsene som Herren deres vil gi dem (med vennlighet og sjenerøsitet). Sannelig, disse er de som var åndelig fullkomne før dette (i jordelivet),

16. उन नेअ़मतों को (कैफो सुरूर) से लेते होंगे जो उनका रब उन्हें (लुत्फो करम से) देता होगा। बेशक ये वोह लोग हैं जो इससे क़ब्ल (की ज़िन्दगी में) साहिबाने एहसान थे।

,১৬. তারা এসব নিয়ামতরাজি (আনন্দে উল্লসিত হয়ে) উপভোগ করতে থাকবে, যা তাদের প্রতিপালক (অনুগ্রহ ও বদান্যতায়) তাদেরকে দান করবেন। নিশ্চয় তারাই এরপূর্বে (পার্থিব জীবনে) ছিল সৎকর্মপরায়ণ।

(الذَّارِيَات، 51 : 16)
فَوَ رَبِّ السَّمَآءِ وَ الۡاَرۡضِ اِنَّہٗ لَحَقٌّ مِّثۡلَ مَاۤ اَنَّکُمۡ تَنۡطِقُوۡنَ ﴿٪۲۳﴾

23. پس آسمان اور زمین کے مالک کی قَسم! یہ (ہمارا وعدہ) اسی طرح یقینی ہے جس طرح تمہارا اپنا بولنا (تمہیں اس پر کامل یقین ہوتا ہے کہ منہ سے کیا کہہ رہے ہو)o

23. So, by the Lord of heavens and the earth, this (promise of Ours) is true just as is your speech. (You firmly believe in what you utter.)

23. Fawarabbi alssamai waalardi innahu lahaqqun mithla ma annakum tantiqoona

23. Ved Herren over himmel og jord! Det (løftet Vårt) er sant akkurat som det at dere kan tale (slik som dere er helt sikre på hva dere sier med tungen deres).

23. पस आस्मान और ज़मीन के मालिक की क़सम ये (हमारा वादा) इसी तरह यक़ीनी है जिस तरह तुम्हारा अपना बोलना (तुम्हें उस पर कामिल यक़ीन होता है कि मुंह से क्या कह रहे हो) ।

২৩. অতঃপর শপথ আকাশমন্ডলী এবং পৃথিবীর অধিপতির! এ (অঙ্গীকার) সত্য, তোমাদের নিজেদের কথাবার্তার মতোই (তোমরা নিজেরা যা কিছু বলো তাতেই তোমাদের পরিপূর্ণ বিশ্বাস হয়)।

(الذَّارِيَات، 51 : 23)
اِذۡ دَخَلُوۡا عَلَیۡہِ فَقَالُوۡا سَلٰمًا ؕ قَالَ سَلٰمٌ ۚ قَوۡمٌ مُّنۡکَرُوۡنَ ﴿ۚ۲۵﴾

25. جب وہ (فرشتے) اُن کے پاس آئے تو انہوں نے سلام پیش کیا، ابراہیم (علیہ السلام) نے بھی (جواباً) سلام کہا، (ساتھ ہی دل میں سوچنے لگے کہ) یہ اجنبی لوگ ہیںo

25. When those (angels) came to him, they wished him peace. Ibrahim (Abraham) also said (in reply): ‘Peace (be upon you)!’ (and thought in his mind that) they were strangers.

25. Ith dakhaloo AAalayhi faqaloo salaman qala salamun qawmun munkaroona

25. Da de (englene) kom inn til ham, hilste de: «Fred!» Abraham svarte: «Fred!» (samtidig tenkte han inni seg): «Fremmede folk!»

25. जब वोह (फरिश्ते) उनके पास आए तो उन्होंने सलाम पेश किया, इब्राहीम (अ़लैहिस्सलाम) ने भी (जवाबन) सलाम कहा, (साथ ही दिल में सोचने लगे कि) ये अजनबी लोग हैं।

২৫. যখন তারা (ফেরেশতারা) তাঁর নিকট আগমন করে বললো, ‘সালাম’। ইবরাহীম (আলাইহিস সালাম) ও (উত্তরে) ‘সালাম’ বললেন। (সাথে সাথে ভাবলেন) এরা তো অপরিচিত লোক।

(الذَّارِيَات، 51 : 25)
فَاَوۡجَسَ مِنۡہُمۡ خِیۡفَۃً ؕ قَالُوۡا لَا تَخَفۡ ؕ وَ بَشَّرُوۡہُ بِغُلٰمٍ عَلِیۡمٍ ﴿۲۸﴾

28. پھر اُن (کے نہ کھانے) سے دل میں ہلکی سی گھبراہٹ محسوس کی۔ وہ (فرشتے) کہنے لگے: آپ گھبرائیے نہیں، اور اُن کو علم و دانش والے بیٹے (اسحاق علیہ السلام) کی خوشخبری سنا دیo

28. Then he felt somewhat concerned about them (when they did not eat). They (the angels) said: ‘Do not worry,’ then they gave him the news about a son possessing knowledge and wisdom (Ishaq [Isaac]).

28. Faawjasa minhum kheefatan qaloo la takhaf wabashsharoohu bighulamin AAaleemin

28. Men så følte han en lett engstelse for dem inni seg (fordi de ikke spiste). Englene sa: «Engst deg ikke!», og de bebudet ham gladmeldingen om en kunnskapsrik sønn (Isak).

28. फिर उन (के न खाने) से दिल में हल्की सी घबराहट महसूस की। वोह (फरिश्ते) कहने लगे: आप घबराइए नहीं और उनको इल्मो दानिश वाले बेटे (इस्हाक़ अ़लैहिस्सलाम) की खु़शख़बरी सुना दी।

২৮. অতঃপর তাদের (না খাওয়ার) কারণে তাঁর অন্তরে ভীতির সঞ্চার হলো। তারা বললেন, ‘আপনি ঘাবড়াবেন না’, এবং তাঁকে এক জ্ঞানী ও ধীশক্তি সম্পন্ন পুত্রসন্তান (ইসহাক আলাইহিস সালাম)-এঁর সুসংবাদ দিলেন।

(الذَّارِيَات، 51 : 28)
فَاَقۡبَلَتِ امۡرَاَتُہٗ فِیۡ صَرَّۃٍ فَصَکَّتۡ وَجۡہَہَا وَ قَالَتۡ عَجُوۡزٌ عَقِیۡمٌ ﴿۲۹﴾

29. پھر اُن کی بیوی (سارہ) حیرت و حسرت کی آواز نکالتے ہوئے متوجہ ہوئیں اور تعجّب سے اپنے ماتھے پر ہاتھ مارا اور کہنے لگی: (کیا) بوڑھیا بانجھ عورت (بچہ جنے گی؟)o

29. Then his wife (Sara) came with a voice laden with wonder and frustration, patted her forehead in astonishment and said: ‘(Will) an old and barren woman (give birth to a child)?’

29. Faaqbalati imraatuhu fee sarratin fasakkat wajhaha waqalat AAajoozun AAaqeemun

29. Men da kom hustruen hans (Sara) inn høylytt av forundring og slo seg på pannen av forbauselse og sa: «(Skal) en gammel, ufruktbar dame (føde barn)?»

29. फिर उनकी बीवी (सारह) है़रतो हसरत की आवाज़ निकालते हुए मुतवज्जेह हुईं और तअ़ज्जुब से अपने माथे पर हाथ मारा और कहने लगी: (क्या) बुढ़िया बांझ औरत (बच्चा जनेगी?) ।

২৯. অতঃপর তাঁর স্ত্রী (সারাহ) বিস্ময়ে হতবাক হয়ে সামনে এলেন এবং আশ্চার্যান্বিত হয়ে নিজের মুখে হাত চাপড়িয়ে বলতে লাগলেন, ‘(কি) বৃদ্ধা বন্ধা নারী (বাচ্চা জন্ম দেবে)?’

(الذَّارِيَات، 51 : 29)
فَاَخَذۡنٰہُ وَ جُنُوۡدَہٗ فَنَبَذۡنٰہُمۡ فِی الۡیَمِّ وَ ہُوَ مُلِیۡمٌ ﴿ؕ۴۰﴾

40. پھر ہم نے اُسے اور اُس کے لشکر کو (عذاب کی) گرفت میں لے لیا اور اُن (سب) کو دریا میں غرق کر دیا اور وہ تھا ہی قابلِ ملامت کام کرنے والاo

40. Then We seized him and his army (with torment), and drowned them (all) in the river. And he was but the perpetrator of condemnable works.

40. Faakhathnahu wajunoodahu fanabathnahum fee alyammi wahuwa muleemun

40. Så tok Vi ham og hærskaren hans fatt (med pinen) og druknet dem i sjøen, for han utrettet kun klanderverdige verk.

40. फिर हमने उसे और उसके लश्कर को (अ़ज़ाब की) गिरफ्त में ले लिया और उन (सब) को दरिया में ग़र्क़ कर दिया और वोह था ही क़ाबिले मलामत काम करने वाला।

৪০. অতঃপর আমরা তাকে এবং তার বাহিনীকে (শাস্তিতে) পাকড়াও করেছিলাম এবং এদেরকে সাগরে ডুবিয়ে দিয়েছিলাম। আর সে ছিল তিরস্কারের উপযুক্ত কর্ম সম্পাদনকারী।

(الذَّارِيَات، 51 : 40)
فَاِنَّ لِلَّذِیۡنَ ظَلَمُوۡا ذَنُوۡبًا مِّثۡلَ ذَنُوۡبِ اَصۡحٰبِہِمۡ فَلَا یَسۡتَعۡجِلُوۡنِ ﴿۵۹﴾

59. پس ان ظالموں کے لئے (بھی) حصۂ عذاب مقرّر ہے ان کے (پہلے گزرے ہوئے) ساتھیوں کے حصۂ عذاب کی طرح، سو وہ مجھ سے جلدی طلب نہ کریںo

59. So there is a fixed share of the torment for these wrongdoers (too) like the share of the torment of their companions (who have passed before). So let them not ask Me to hasten (it).

59. Fainna lillatheena thalamoo thanooban mithla thanoobi ashabihim fala yastaAAjiloona

59. Sannelig, for de ondsinnede er det fastsatt en andel av pinen lik pinen til deres venner (som levde før dem). De bør ikke be om framskyndelse fra Meg.

59. पस उन ज़ालिमों के लिए (भी) हिस्सए अ़ज़ाब मुक़र्रर है उनके (पहले गुज़रे हुए) साथियों के हिस्सए अ़ज़ाब की तरह, सो वोह मुझसे जल्दी तलब न करें।

৫৯. অতঃপর অত্যাচারীদের জন্যে(ও) রয়েছে শাস্তির নির্ধারিত অংশ, তাদের (পূর্বে অতিক্রান্ত) সঙ্গীদের শাস্তির অংশের ন্যায়। সুতরাং তারা যেন আমার কাছে (তা) তাড়াতাড়ি কামনা না করে।

(الذَّارِيَات، 51 : 59)